भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह, जिन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं, की गिरफ्तारी की मांग कर रहे पहलवान अपने आंदोलन को जिंदा रखने के लिए अपनी योजनाओं पर विचार-विमर्श जारी रखे हुए हैं। विरोध अब जांच के तकनीकी बिंदुओं को लेकर नहीं है। इस घिसे-पिटे कथन पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि कानून अपना काम कर रहा है। तथ्य यह है कि सत्तारूढ़ दल का एक सांसद इतने गंभीर आरोप (जिसमें पोक्सो के तहत आरोप भी हैं) लगने पर भी किसी राजनीतिक लानत-मलामत का सामना नहीं कर रहा है, जो कि सार्वजनिक जीवन और खेल प्रशासन में शुचिता के लिए चिंताजनक है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि श्री सिंह के खिलाफ मामलों की जांच चल रही है और इसकी ‘स्टेटस रिपोर्ट’ अदालत में दाखिल की जाएगी। लेकिन इतने मामूली से दावे वाली सोशल मीडिया पोस्ट्स को पुलिस बल द्वारा डिलीट कर दिया जाना, उसकी जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। मंगलवार को पहलवानों (जिनमें अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता भी शामिल हैं) के आंदोलन ने उस वक्त भावनात्मक मोड़ ले लिया जब वे अपने पदकों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए हरिद्वार में जमा हुए। अंतिम क्षण में उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए, लेकिन इंसाफ की अपनी मांग छोड़ने को वे तैयार नहीं हैं।
इस विरोध प्रदर्शन को सिविल सोसाइटी का समर्थन मिला है, और इसने अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग समेत अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों का ध्यान खींचा है, जिन्होंने नये संसद भवन के उद्घाटन वाले दिन पहलवानों पर पुलिस की कार्रवाई की निंदा की है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसान नेता भी आंदोलन को मजबूत करने के संकल्प के साथ इन पहलवानों के समर्थन में उतरे हैं। इस बीच, बृजभूषण शरण सिंह सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा निंदा का सामना करने की जगह, उसके नेतृत्व के संरक्षण का आनंद लेते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट से यह ताकतवर सांसद प्रदर्शनकारियों पर आरोप लगा रहा है और अपने समर्थकों को गोलबंद कर रहा है। कभी टाडा के मामले में आरोपी रहे श्री सिंह भाजपा की विराट योजना में बहुत मूल्यवान नजर आते हैं। यह तो हो ही नहीं सकता कि किसी को तय प्रक्रिया (जिसमें जांच व मुकदमा शामिल है) के बगैर सजा सुना दी जाए, लेकिन शुचिता के सवाल पर मानदंड ऊंचा होना चाहिए। श्री सिंह पर लगे आरोप गंभीर प्रकृति के हैं जो किसी प्रतिष्ठित खेल निकाय का नेतृत्व करने की उनकी हैसियत पर बट्टा लगाते हैं। यह सही है कि आपराधिक जांच को सड़कों पर हो रहे विरोध से प्रभावित नहीं होना चाहिए, लेकिन यह संदेश सबको (खासकर पीड़ितों और मुजरिमों को) साफ होना चाहिए कि भारत में यौन उत्पीड़न नाकाबिले बर्दाश्त है।
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