निचले स्तर की एक और हरकत: कनाडा में कनाडा के सिख अलगाववादी समूहों का ताजा उकसावा

सिख उग्रवाद पर भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए कनाडा कुछ खास नहीं कर रहा

June 09, 2023 12:30 pm | Updated 12:30 pm IST

कनाडा के ब्रैम्पटन में, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को महिमामंडित करती एक झांकी ने प्रत्याशित रूप से पूरी भारतीय राजनीति में आक्रोश पैदा किया है। यह झांकी कनाडाई सिख अलगाववादियों या ‘खालिस्तानी’ गुटों की, 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में आयोजित, सालाना परेड का हिस्सा थी। इसके साथ जो पोस्टर लगा था उसमें इस हत्या को ‘बदला’ बताया गया था। भारत के राजनीतिक नेताओं ने कनाडा से माफी की मांग की है और भारत-विरोधी अलगाववादियों व उग्रवादी ताकतों के उभार के खतरे को स्वीकार करने को कहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि यह घटना एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा है, जो इंगित करती है कि ये ताकतें न सिर्फ भारत-कनाडा संबंध के लिए, बल्कि खुद कनाडा के लिए भी एक वास्तविक चुनौती पेश करती हैं। उन्होंने इशारा किया कि इन गुटों के खिलाफ कार्रवाई में नाकामी की वजह उस कनाडाई ‘वोट बैंक’ को तुष्ट करने की इच्छा है जिसे लगभग आठ लाख सिखों का एक काफी बड़ा समुदाय निर्मित करता है। उन्होंने कहा कि हिंसा को विरोध जताने के एक स्वीकृत तरीके के बतौर वैधता प्रदान करने की संस्कृति ऐसी चीज है जिससे कनाडा के नेतृत्व को भी चिंतित होना चाहिए, खासकर 1985 में एयर इंडिया की उड़ान में बम धमाके जैसी अतीत की घटनाओं को देखते हुए। भारत-कनाडा संबंध इसी तरह के मुद्दों से भरे हुए हैं। भारत ने वहां मंदिरों व सामुदायिक केंद्रों में तोड़-फोड़ और उन पर भारत व मोदी विरोधी दीवार-लेखन की घटनाओं का विरोध किया है। इसके अलावा, उसने 2020 के कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे पंजाब के किसानों के साथ नरेन्द्र मोदी सरकार के सलूक की आलोचना करने वाली, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की टिप्पणियों का भी विरोध किया। नतीजतन, भारत ने कई महीनों के लिए नई दिल्ली और ओटावा के बीच संवाद को एक तरह से तोड़ लिया था और उच्च-स्तरीय भेंट-मुलाकातों को रद्द कर दिया था। हालांकि, बाद में ये बहाल हो गए।

ताजा उकसावा इस तरह की स्थिति की दोबारा शुरुआत कर सकता है, और अगर दोनों सरकारें द्विपक्षीय रिश्तों में एक और निचले स्तर से बचना चाहती हैं, तो उन्हें इन मसलों को कूटनीतिक ढंग से हल करने की जरूरत है। कनाडाई सरकार अपने देश में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के हक में है, लेकिन उसे भारत की इस चिंता को समझना होगा कि एक प्रधानमंत्री की हत्या को महिमामंडित करने वाली झांकी भड़काऊ नफरती अभिव्यक्ति है, और कट्टरपंथ को हवा दे सकती है। इस बीच, कानूनी विरोध प्रदर्शनों को रुकवाने की कोशिश करने, या तोड़-फोड़ की हर घटना पर राजनयिक विरोध जताने के बजाय, ज्यादा फलदायी यह होगा कि नई दिल्ली इस तरह के गुटों की उग्रवादी गतिविधियों और आतंकवादी कृत्यों के सबूत साझा करने और सहयोग करने में सक्षम हो। खालिस्तानी विरोध प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में देखे गए हैं, जिसके मद्देनजर मोदी सरकार को अब एक व्यापक कूटनीतिक रणनीति की रूपरेखा तैयार करनी होगी, ताकि इस मसले से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके। इस पर इन सभी देशों के नेताओं से भी चर्चा की जा सकती है जो सितंबर में जी-20 की शिखर बैठक के लिए भारत आने वाले हैं।

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